प्लीज, शहरी जिंदगी में गंवारपन को मरने मत दीजिए!
‘ए घरी के मेहरारू आवत बाड़ी स, मत पूछीं। सभके उहे हाल बा, ले लुगरी आ चल डुमरी’, रमेसर काका
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Read moreप्रिय सुशांत, नमस्ते अलविदा! मुझे पता है, यह चिट्ठी तुम तक नहीं पहुंच पाएगी। फिर भी लिख रहा हूं, बिना
Read moreचुरा लिया है तुमने जो दिल को..! दम मारो दम मिट जाए गम फिर बोलो सुबह शाम…! नीले नीले अंबर
Read moreजंगल जंगल बात चली है पता चला है, चड्डी पहन के फूल खिला है..! वर्ष 1990 का दशक, यानी एक
Read moreपानी वाला दूध! पतली दाल! मोटे चावल का भात! आलू की बेस्वाद झोलदार सब्जी! एक कमरे में जरूरत से ज़्यादा
Read moreयदि आप एक अरसे के बाद शहर से गांव में आए हैं। लॉक डाउन में फंसे हैं। एंड्राइड पर फेसबुक,
Read moreकाका 70 वर्ष के हो चले हैं। उस जमाने के इंटर पास हैं। जब मैट्रिक पास करते ही दारोगा या
Read moreप्यारी सैंकी , आज नौ फरवरी है। हिंदी के लास्ट परीक्षा के साथ हमारा आईएससी का एक्जाम बीत गया। अंगरेजी
Read moreबसंत आ गया। दिख रहा है, खेतों में फुलाए पीले-पीले सरसों की पंखुड़ियों में। अंगड़ाई लेते मटर, गेंहूं के हरिहराए
Read moreमोतिहारी। मजबूरी का नाम भले ही महात्मा गांधी हों या ना हों। लेकिन संघर्ष का दूसरा नाम शर्मा जी जरूर
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